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नमस्कार। बुनियादी बातें के नवें episode में आपका स्वागत है। इस सीरीज़ में हम दुनिया भर की बातें करते हैं – science की, history की, society की। लेकिन हमेशा करते हैं बुनियादी बातें। आज हम बात करने वाले हैं Power की, जिसकी चर्चा इस सीरीज़ के पिछले कुछ episodes में भी हुई है, लेकिन जिसके बारे में हमने विस्तृत बातें नहीं की हैं।
Power, of course, English का एक शब्द हैं जिसका मतलब सभी जानते होंगे। तो फिर हम इसके ऊपर पूरा episode क्यों बना रहे हैं। क्योंकि हम English word power की नहीं बल्कि social power के concept की बात कर रहे हैं, जो कि थोड़ा subtle concept है, लेकिन जो हमारे समाज, देश, क़ानून व्यवस्था, in fact, मानव सभ्यता की बुनियाद को प्रभावित करता है। बल्कि ये कहना ज़्यादा सही होगा कि Social power और उससे जुड़ा concept – privilege – हमारे समाज की बुनियाद में गुंथे हुए हैं, और इस तरह गुंथे हुए हैं कि हमें पता भी नहीं चलता कि वे exist करते हैं। Power और privilege को समझना, एक तरह से अपने आप को समझने का तरीका है।
क्या आपने कभी ऐसी घटना सुनी या देखी है जहाँ किसी teacher के छोटे से encouragement से किसी बच्चे ने ऐसी line पकड़ी जिससे उसकी ज़िंदगी बन गई। और उसका उलटा भी जहाँ किसी teacher की डाँट या हतोत्साहित करने वाली बात ने किसी बच्चे को कोशिश करने से भी रोक दिया। Teachers जिन बच्चों को पसंद करते है, और जिनको नापसंद करते हैं, जिनके ऊपर ध्यान देते हैं, और जिनके ऊपर नहीं देते हैं, उनका development बिलकुल अलग direction में होता है। Teacher और student की relationship में, भले ही कितनी कहानियाँ हों कि बच्चे teachers को कितना परेशान करते हैं, लेकिन ultimately teacher के पास एक power होती है। उनके पास power होती है कि बच्चों को दिन को रात, और रात को दिन बता दें, और बच्चे उसे मान लें। इस power का physical power से कोई लेना-देना नहीं है। जहाँ teacher बच्चे पर गलती से भी हाथ नहीं उठा सकते, वहाँ भी teacher की power होती है। ये एक social power है।
अब उस teacher को देखें, तो उनके ऊपर भी किसी की power होगी। School के principal की, school के administration की, और अगर बहुत पैसे charge करने वाला private school है, तो शायद बच्चों के parents की भी। और यहाँ सिर्फ formal power की बात नहीं हो रही है, कि principal teacher का boss है, तो कुछ decisions उसके पास हैं। यहाँ भी एक subtle power है। मान लीजिए कि teacher ने किसी student से सख्ती से कुछ कहा, और parents गुस्सा हो गए। यहाँ पर school principal teacher के साथ खड़ा होगा या नहीं, ये उस teacher के ऊपर उसकी बहुत बड़ी पावर है, और शायद student के ऊपर भी। इस situation में कौन सही था और कौन गलत, ये निर्णय लेने की पावर है उसके पास। तो एक principal की teacher और student दोनो के ऊपर power है।
उसी तरह से पुलिस के पास power है। कानून की रक्षा करने के लिए तो कई तरह की powers हैं ही, formally, लेकिन एक आम नागरिक के नज़रिए से कई तरह की subtle powers भी हैं। आप किसी की complaint कर रहे हैं तो वो आपको seriously लेंगे या नहीं, report लिखेंगे या नहीं, report लिखी भी तो उस पर कोई कार्यवाही करेंगे या नहीं, ये एक पावर है पुलिस के पास आपके ऊपर। दूसरी तरफ़ अगर कोई आपके ख़िलाफ़ झूठी complain लिखवा रहा है, तो पुलिस उसे कैसे handle करेगी, इसकी वजह से भी उनकी बड़ी power है आपके ऊपर। और proxy से जिन लोगों को police ज़्यादा seriously लेती है, जैसे कि जिनकी police department में जान-पहचान है उनकी आपके ऊपर power हो जाती है।
Power dynamics लगभग हर relationship में होती है। एक job interview के समय interviewer की interviewee के ऊपर पावर होती है, parents की बच्चों के ऊपर power होती है, अगर एक business negotiation चल रहा है दो कंपनियों के बीच तो उनमें से एक अगर established बड़ी company है और दूसरी एक startup जो किसी तरह से market में घुसने की कोशिश कर रही है, तो established company के लोगों की startup के लोगों के ऊपर पावर है।
इन उदाहरणों में हम फिर भी power का एक formal, legitimate source और reason देख सकते हैं। लेकिन power के source कई बार legitimate नहीं होते हैं, फिर भी power होती है। और यहाँ के कुछ उदाहरण आपको uncomfortable लगेंगे, लेकिन सुनिए ज़रूर। किसी भी public जगह पर बस, train, मेला, बाज़ार – पुरुषों की स्त्रियों के ऊपर पावर होती है। वे बहुत कुछ कर सकते हैं, स्त्रियों को molest कर सकते हैं, सीटियाँ बजाकर, ऊल-जलूल बातें कर के उनकी insult कर सकते हैं, उन्हें डरा सकते हैं, उनके आत्मविश्वास और dignity को ज़िंदग़ी भर के लिए चोट पहुँचा सकते हैं, और उन्हें पता है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारा समाज, यहाँ तक की हमारी पुलिस और हमारे नेता भी स्त्रियों को घर पर रहने को कहेंगे। ये है पावर एक gender की दूसरे gender पर। कोई legitimate reason नहीं है, लेकिन power है। हर रोज़. हर कोई इस्तेमाल करे या ना करे लेकिन power है।
एक और उदाहरण है इस तरह की पावर का जिसे मानने से हमारा समाज, खास कर के सवर्ण लोग, बहुत कतराते हैं। वो है तथाकथित ऊँची जाति के लोगों का तथाकथित नीची जाति के लोगों पर पावर। और नहीं, यह सिर्फ़ पिछड़े गांवों में नहीं है, जहाँ दलित दूल्हे को घोड़ी चढ़ने के लिए भी मार दिया जाता है। ये हर जगह है, हमारे शहरों में, हमारे परिवारों में, हमारे educational institutes में, हमारे workplaces में, fancy से fancy जगहों पर सवर्ण लोग दलितों का, आदिवासियों का मज़ाक उड़ा सकते हैं, उन्हें नीचा दिखा सकते हैं, caste-no-bar का वैवाहिक विज्ञापन देकर भी दलितों से विवाह करने से इंकार कर सकते हैं और उनकी बेइज़्जती कर सकते हैं, “category candidates” को नीची नज़रों से देख सकते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर सकते हैं, उनकी hiring और promotion में अड़चन डाल सकते हैं अपने biases की वजह से, और उनका कुछ नहीं बिगड़ता। Caste की बात आने पर ज़्यादातर लोग इस power dynamic के बारे में बात नहीं करना चाहते, बस reservation आज-के-आज खतम करा देना चाहते हैं। Reservation के बारे में हम कभी फिर बात करेंगे। लेकिन power का ये उदाहरण मत भूलिएगा।
एक और महत्वपूर्ण power को समझना ज़रूरी है, वो है सरकार की पावर, नागरिकों के ऊपर। Formally और exactly, हम इसे state power कहते हैं। State का मतलब यहाँ राज्य नहीं है। State शब्द को यहाँ overall सरकारी machinery का पर्याय माना जा सकता है – हर level की machinery। इस power का source legitimate है। State का काम है कि समाज में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखे, और इसलिए उसके पास लोगों को गलत काम करने से रोकने की power होनी ही होगी। और क्योंकि state की responsibility इतनी बड़ी है, उसकी powers भी बहुत ज़्यादा हैं, और बहुत pervasive हैं। बड़े स्तर पर हर तरह के गलत काम को रोकने के लिए state ने बहुत तरह के नियम-कानून बना रखे हैं। इतने नियम-क़ानून हैं कि कोई भी सारे नियम-क़ानून जान नहीं सकता, और जानें भी तो कई परिस्थितियों में उनको follow करना possible ही नहीं होगा। Zebra crossing पर सड़क ना cross कर के ही हमारे देश में कितने लोग रोज़ क़ानून तोड़ते हैं। लेकिन हमारे शहरों में जितनी population है, सड़कों और traffic की जो हालत है, और zebra crossings की उपलब्धता ही इतनी कम है, तो अगर सब लोग उस क़ानून को follow करने लगें तो शायद शहरों में सारा काम ही रुक जाएगा। आधे लोग nearest zebra crossing तक पहुँच नहीं पाएंगे, आधे पहुँच कर वहाँ jam लगा देंगे। लेकिन सरकार अगर आपके पीछे पड़ जाए तो zebra crossing का ही इस्तेमाल कर के आपकी ज़िंदग़ी हराम कर सकती है। ये थोड़ा comical लगता है, लेकिन कई ऐसे नियम क़ानून हैं, जिनका इस्तेमाल बिलकुल legitimate तरीके से कर के सरकार बिलकुल innocent लोगों की ज़िंद़ग़ी खराब कर सकती है। और ऐसा हर रोज़ होता है। कितने लोग सालों तक जेल में सड़कर बेगुनाह साबित किए जाते हैं। Eventually अगर उन्हें रिहाई मिल भी गई तो भी सरकार की power ने उनके इतने साल और जिंदग़ी तो खराब कर ही दी।
सरकार के पास सिर्फ़ कानून का इस्तेमाल करने की नहीं, बल्कि क़ानून बनाने की भी power होती है। किस चीज़ को गलत माना जाता है, किसको नहीं, यह अपने आप में power का बड़ा source है। मान लीजिए कि अगर सरकार ने नियम बना दिया कि शादी-ब्याह, जन्मदिन, त्योहारों पर जितने भी gifts लिए-दिए जाते हैं, उन सबका ब्योरा आपको अपने income tax return में देना होगा, तो कितने लोग इस नियम का शत-प्रतिशत पालन कर पाएंगे। सरकार भी सबके पीछे नहीं दौड़ पाएगी, लेकिन जिसके पीछे वह जाना चाहे, उसे अगर सौ रुपए की एक किताब भी gift में मिली हो तो income tax evasion का मामला बनाकर उन्हें पूरी जिंदग़ी court-कचहरी और वकीलों के चक्कर में फंसा कर रख देगी। Gifts का लेखा-जोखा रखने के क़ानून के पीछे genuine वजह ये हो सकती है कि कई लोग commercial transactions को gifts बता कर tax की चोरी कर रहे हों। लेकिन gifts लेना-देना आम आदमी के लिए इतना normal काम है कि ऐसा क़ानून बना देने के बाद अपनी life एक बिलकुल normal तरीके से जीने वाला इंसान भी आसानी से मुजरिम करार दिया जा सकता है। तो state power की जरूरत तो है, लेकिन ये ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि वो power बहुत ज़्यादा है और उसके गलत इस्तेमाल से लोगों की ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है, और हर रोज़ होती है।
क्यों power relationships को समझना ज़रूरी है। क्योंकि हमारे समाज में बहुत कुछ जो सही या गलत होता है, वह इसपर निर्भर करता है कि क्या हम इस power dynamics में powerful को और बढ़ावा दे रहे हैं, और जिनके पास power नहीं है उनपर ही और मुसीबत डाले जा रहे हैं, या हम powerful लोगों से accountability माँग रहे हैं। ये power dynamics और उसकी तरफ़ हमारा attitude ये decide करते हैं कि हमने किस तरह का समाज बनाया है। एक तानाशाही समाज में तानाशाह की पावर absolute होती है और वह उसका जैसे भी इस्तेमाल करे, कोई उसे कुछ कह नहीं सकता। यह तो एक अच्छा समाज नहीं है। और इसलिए एक democratic या लोकतांत्रिक समाज में सरकार से, powerful लोगों से सवाल पूछने की आज़ादी ज़रूरी मानी जाती है।
क्या करना चाहिए एक अच्छे समाज को अलग-अलग तरह की power dynamics के बारे में।
उसे समझने के लिए इस बात पर फिर गौर करते हैं कि power दो तरह की हैं हमारे उदाहरणों में।
एक तरह की power ज़रूरी power, उसका एक legitimate reason या source है। जैसे कि parents की बच्चों के ऊपर power होना ज़रूरी है, खास कर के तब जब वह छोटे हैं, क्योंकि वे अपनी ज़िदगी खुद जीने में, या अपने लिए सही decisions लेने में सक्षम नहीं है। तो अगर parents के पास उनके भले-बुरे के लिए निर्णय लेने की power नहीं होगी, तो बच्चे ज़िदा ही नहीं बचेंगे, parents ने ना रोका तो कितने बच्चे खुद को आग में झुलसा लेंगे या सीढ़ियों पर गिर कर मर जाएंगे, या बच भी गए तो अगर parents उनके पीछे नहीं पड़े, तो कभी पढ़ाई नही करेंगे, कुछ काम करना नहीं सीखेंगे, किसी काम के नहीं रहेंगे। इसी तरह से school में teachers की, office में seniors की और managers की, और देश में सरकार की power ज़रूरी है, वर्ना वे अपना काम नहीं कर पाएंगे और समाज चलेगा ही नहीं।
ऐसे power के case में एक अच्छे समाज में ध्यान इस चीज़ पर दिया जाएगा कि powerful व्यक्ति या institution accountable [JJ1] है, अपने power का गलत इस्तेमाल नहीं कर रहा है, और अपने पावर का इस्तेमाल सिर्फ अपना काम करने के लिए कर रहा है, personal फ़ायदे के लिए नहीं कर रहा, और अपने power के इस्तेमाल में अपने biases को नहीं आने दे रहा है। एक अच्छा समाज यह भी ensure करेगा कि power किसी को सिर्फ़ उतनी मिले जितनी absolutely ज़रूरत है। क्योंकि ज़्यादा power, मतलब power का ज़्यादा misuse.
दूसरी तरह की power बिलकुल गलत होती है। जैसे कि gender और caste वाली power. एक अच्छा समाज इसको justify करने की कोशिश नहीं करेगा, उसको नज़रअंदाज़ करने की कोशिश भी नहीं करेगा, बल्कि इसके खिलाफ़ जंग छेड़ देगा। तब तक जब तक ऐसी power dynamics समाज से खतम ना हो जाए। लेकिन एक practical अच्छा समाज यह भी समझेगा कि ये जंग लंबी चलेगी क्योंकि कोई भी power छोड़ना नहीं चाहता। एक practical अच्छा समाज यह भी समझेगा कि कोई silver bullet या quick solution नहीं है इस समस्या का। जंग लंबी चलनी ही होगी।
अब अगर आप देश और समाज में कुछ individuals, groups और institutions की power की existence की ज़रूरत और खतरों दोनो को समझते हैं, तो वहाँ से हम संविधान और कानून के कई प्रावधानों को बेहतर समझ सकते हैं। ऐसे कुछ प्रावधानों पर बात करते हैं।
हमने पिछले episode Indian Democracy में बात की थी कि कैसे democracy को सरकार और नागरिकों के बीच के power difference को address करना होता है, और उसके लिए कैसे संविधान में कई प्रावधान है। जैसे कि नागरिकों के मौलिक अधिकार – fundamental rights. हमारी moral upbringing ऐसी है कि हम कई बार rights – अधिकार – शब्द को अच्छा मानने से कतराते हैं। कई लोग तो ऐसे behave करते हैं जैसे कि सरकार से अधिकारों की मांग करके हम selfish हो रहे हैं। जैसे कि हम कोई बिगड़े बच्चे हैं, जिन्होंने अपने parents से कोई महँगा gift खरीदने की ज़िद लगा दी हो। लेकिन हमारे सांवैधानिक अधिकार बिगड़े बच्चे को मिले gifts नहीं हैं। हमारे सांवैधानिक अधिकार एक अच्छे, न्यायपूर्ण समाज की रीढ़ हैं। क्योंकि वे government की excessive power को regulate करने का तरीका हैं। तो आज के बाद कभी भी सांवैधानिक अधिकारों को, या उसकी मांग को हेय दृष्टि से मत देखिएगा।
सरकार में तीन independent अंगों का होना – विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका – जिनके बीच division of power है, यह भी government या state power को control करने का तरीका हैं। इसलिए अगर कभी इनमें से एक अंग किसी दूसरे के प्रभाव में आता है, तो उसके बारे में चिंता करना, और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भी बिलकुल जायज़ है।
हमने episode में पहले ये भी कहा कि एक democratic या लोकतांत्रिक समाज में सरकार से, powerful लोगों से सवाल पूछने की आज़ादी ज़रूरी मानी जाती है। ये freedom of speech, और freedom of press जैसे सिद्धांतों में दिखता है। लेकिन इनका इस्तेमाल करके powerful लोगों या सरकार को challenge करना हमारी भारतीय संस्कृति में कई बार लोगों को सही नहीं लगता। हमें आज्ञाकारी होना सिखाया जाता है, बड़े लोगों की तरफ़ और authority वाले लोगों की तरफ़। और आम तौर पर rules-regulations को follow करना सही भी है। लेकिन जहाँ power dynamics को challenge करने की बात आती है, उसे संतुलित करने की बात आती है, वहाँ सरकार की तरफ़ blind obedience गलत है। Powerful लोगों और सरकार से सवाल पूछना, उनके गलत actions और rules के खिलाफ़ खड़े होना सही है। ये सिर्फ़ हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि नैतिक ज़िम्मेदारी है एक अच्छा, न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए।
State power से related कुछ प्रावधान criminal justice system में भी हैं। जब भी कोई crime होता है, जिसके लिए criminal case करना होता है – जैसे कि चोरी, rape, murder इत्यादि, तो इसमें आरोपी के ऊपर case चलाने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है, state की होती है। उसमें case victim और आरोपी के बीच नहीं चलता। जो कि एक अच्छी बात है, क्योंकि क़ानून व्यवस्था बनाए रखना सरकार का काम है और इसलिए case चलाना victim की ज़िम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। कोई आरोपी इस वजह से नहीं बच जाना चाहिए कि victim कमज़ोर था या उसके पास resources नहीं थे। इस अच्छे प्रावधान का flip side ये है कि आरोपी के ख़िलाफ़ state power है। और state power, हमने देखा है कि बहुत ज़्यादा होती है, और बड़े-से-बड़े तीसमार खाँ लोगों को मज़ा चखा सकती है। अगर वे तीसमार खाँ वाकई दोषी हैं, तो फिर तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर नहीं दोषी हैं, और state की machinery उनके ख़िलाफ़ खड़ी हो गई तो उनको बचाना नामुमकिन हो जाएगा, अगर उनकी रक्षा के लिए प्रावधान नहीं हैं तो। इसलिए आरोपियों के पास भी कुछ अधिकार हैं। जैसे कि लगभग हर आरोपी का bail मिलने का अधिकार होता है। ऐसे आरोप जिसमें bail नहीं मिल सकती, बहुत संगीन और बहुत obvious होने चाहिए। पुलिस अगर non-bailable आरोप दायें-बायें लगाती रहती है जिनको भी चुप कराने का मन हुआ उनके ख़िलाफ़ तो यह गलत करती है क्योंकि ये state power का नाजायज़ इस्तेमाल है। हर आरोपी को legal representation का भी अधिकार है precisely इसलिए कि उसके ख़िलाफ़ state power खड़ी है। अगर victim के कमज़ोर होने की वजह से दोषी का छूटना गलत है, तो आरोपी के कमज़ोर होने की वजह से उसको दोषी करार दिया जाना भी गलत है। हम अक्सर आरोपियों के अधिकार की महत्ता समझते नहीं है। और खासकर अगर हम convinced हैं कि आरोपी दोषी है, तो कई लोग चाहते हैं कि आरोपी को कोई मदद ना मिले। लेकिन यहाँ पर बात सिद्धांतों की है। एक आरोपी को आप दोषी मानते हैं, एक को नहीं। आरोपी होने की वजह से state machinery दोनों के ही ख़िलाफ़ खड़ी है। तो अगर आरोपियों के अधिकारों की रक्षा नहीं होगी तो निर्दोष आरोपी भी suffer करेंगे। और इसलिए state power के सामने आरोपियों के अधिकारों की रक्षा ज़रूरी है, चाहे वह ज़्यादातर cases में bail का अधिकार हो, या legal representation का।
कई क़ानूनी प्रावधान नागरिकों के different groups के बीच के power को address करने के लिए भी बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ well-known क़ानून हैं consumer protection act, SC/ST prevention of atrocities act, Dowry prevention और workplaces में women के sexual harassment को रोकने से संबंधित क़ानून जिसे अक्सर POSH act कहा जाता है – prevention of sexual harassment act. अगर बिलकुल technically देखा जाए तो इन क़ानूनों से जो achieve करने की कोशिश की जा रही है, उसके लिए इतने specific क़ानूनों की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। SC/STs पर atrocities रोकने के लिए normal criminal law के प्रावधान काफ़ी होने चाहिए, और उसी तरह workplace sexual harassment से deal करने के लिए sexual assault से related दूसरे क़ानून काफ़ी होने चाहिए। फिर ये special क़ानून क्यों हैं? कई लोग कहेंगे कि vote bank के लिए हैं। अब हो सकता है कि कुछ क़ानूनों का vote bank के लिए इस्तेमाल होता हो समय-समय पर। लेकिन इस तरह के क़ानूनों के पीछे सिद्धांत vote bank का नहीं है। सिद्धांत power difference को address करने का है। इस case में power difference state और नागरिकों के बीच का नहीं है, बल्कि नागरिकों के different groups का है। इन cases में जो लोग crime करते हैं वे invariably victim से ज़्यादा powerful होते हैं socially। In fact, जिस rates से ये crime होते हैं, उसकी वजह ही यही है कि दो group के लोगों में इतना power difference है। जब औरतों का sexual harassment होता है, तो उसे और तरह के workplace harassment की तरह treat नहीं किया जाता। ज़्यादातर लोग इसे natural मानते हैं – ये सब तो चलता रहता है। उसके ख़िलाफ़ कोई victims का साथ नहीं देता, और प्रायः perpetrators organization में ज़्यादा ऊंचे position वाले men होते हैं। तो पूरी organization भी उनको बचाने में अपना भला समझती है। जैसे state power के खिलाफ़ आम आरोपियों को सहायता की ज़रूरत होती है, वैसे ही ऐसे cases में victims को अपने powerful opponents के ख़िलाफ़ ज़्यादा सहायता की ज़रूरत है, क्योंकि normal क़ानून इस power difference को ध्यान में रखकर नहीं बने हैं। Dowry harassment, दलित और बहुजनों के ख़िलाफ़ crimes में भी victims और perpetrators में ऐसे ही differences होते हैं, और ये special क़ानूनों की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि ये clear था की normal क़ानून इस power difference को address नहीं कर पा रहे हैं।
अगर इस सिद्धांत को मानना आपके लिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि इन क़ानूनों को लेकर लोगों के अक्सर strong emotional reaction होते हैं, तो consumer protection act का उदाहरण शायद ज़्यादा आसान होगा मानना क्योंकि इसको लेकर लोगों का ज़्यादा emotional reaction नहीं होता है। अगर किसी बड़ी कंपनी ने किसी उपभोक्ता के साथ cheating की, उसे गलत सामान बेचा, तो वह क़ानूनी तौर पर गलत है, लेकिन कितने आम लोग किसी कंपनी को court में ले जाकर case जीत पाएंगे। और उतने बड़े-बड़े lawyers को hire कर पाएंगे, जो उन companies के पास हैं case जीतने के लिए। Technically, cheating के ख़िलाफ़ कानून हैं, लेकिन वो इस power difference को address नहीं करते हैं। इसलिए consumer protection act उपभोक्ताओं के लिए ये काम थोड़ा आसान बना देता है।
इस तरह के क़ानूनों को लेकर लोगों का focus अक्सर ही इन दो चीज़ों पर रहता है कि इससे समस्या 100% solve नहीं हो जाती, और उसका दुरुपयोग होता है। और इसकी दुहाई देकर लोग अक्सर Dowry prevention, POSH और SC/ST atrocities prevention acts के खिलाफ़ रहते हैं। लेकिन अगर ऐसा है तो फिर से consumer protection act के बारे में सोचिए, जिसको लेकर शायद emotional response उतना तगड़ा नहीं होगा और आप शांति से सोच सकते हैं। क्या 100% consumer protection हो जाता है इससे, या क्या consumers इसका misuse नहीं करते हैं। जवाब है कि 100% consumer protection नहीं हो पाता – कई लोगों के लिए consumer courts भी बहुत बड़ा झंझट हैं, और हाँ, हैं उपभोक्ता जो इसका गलत इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं, खास कर छोटी कंपनियों के ख़िलाफ़ जिनके पास बड़ी कंपनियों जितनी power नहीं है। लेकिन अगर ये क़ानून चला जाएगा तो क्या दुनिया में 100% justice आ जाएगा। नहीं – बल्कि कंपनियाँ लोगों को ज़्यादा cheat करने लगेंगी। तो 100% goal achieve नहीं होना, या misuse की possibility होने का मतलब यह नहीं है कि हम powerless लोगों को powerful के ख़िलाफ़ क़ानून के ज़रिए protect करने की कोशिश छोड़ दें। हाँ, हमें 100% goal achieve करने के लिए, और misuse रोकने के लिए भी प्रयत्न ज़रूर करते रहने चाहिए।
ये episode लिखने में मुझे कई महीने लगे। ये बहुत difficult topic है। मुझे नहीं पता कि मैं इसे समझाने में कितनी successful ऱही हूँ लेकिन मुझे कोशिश करनी थी। क्योंकि power और privilege को समझना – privilege पर हमने इस episode में बात नहीं की – लेकिन इनको समझने के बाद मेरा दुनिया को देखने का तरीका ही बदल गया था। और जैसा मैंने शुरु में कहा था कि ये हमारे समाज की बुनियाद में ऐसा गुंथा हुआ है कि हमें दिखता नहीं है। लेकिन एक बार आपको दिख गया तो फिर आप इसको अनदेखा नहीं कर सकते। अगर उस process में इस episode से थोड़ी सी भी मदद मिले तो ये successful होगा। और यह भी संभव है कि कई लोग इस episode के content और इसके implications की वजह से मुझपर गुस्सा करें। ऐसे होता है तो माफ़ी चाहती हूँ, लेकिन सच uncomfortable होता है। ये मेरा किया-धरा नहीं है। So, don’t shoot the messenger.
बहुत-बहुत धन्यवाद ये episode देखने के लिए। आशा है आगे-पीछे वाले episodes भी आप देखेंगे।
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Featured Image Credit: Photo by Kalea Morgan on Unsplash